अद्वैत । Advait
जिस दिन जीव की एकाग्रता का स्तर बढ़कर ऐसे स्तर पर पहुँच जाता है जहाँ उसे अपने जीवन लक्ष्य के समकक्ष और कुछ नहीं दिखता तब उस जीव को सम्बन्धित लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है।
सदैव अपने लक्ष्य के प्रति भ्रम में रहने वाले की न ही ईश्वरीय उपासना सिद्ध होती है और न ही जीवन का कोई बड़ा लक्ष्य ही पूरा होता है।
मन और बुद्धि जीव को सदैव जीवन से सम्बन्धित अलग अलग दृश्य देती रहती है और जीव अपने मूल लक्ष्य को बार बार खोता रहता है और इसी माया के चलते असन्तोष व असन्तुष्टि को प्राप्त होकर तृष्णा में जीता रहता है।
जिस दिन जीव एकाग्र होकर ज्ञान बोध से बुद्धि और मन के बीच निर्मित माया के द्वैत को समाप्त कर देता है उस दिन उस जीव को सब कुछ प्राप्त करने का मूल मंत्र प्राप्त हो जाता है।
कर्मकाण्ड और नियमित उपासना से स्वयं को ज्ञान बोध के लिए तैयार करिये और ब्रह्मतत्व को बिना भ्रम के एक आँख अर्थित अद्वैत भाव से समझिए निश्चित रुप से आपके जन्म का परम उद्देश्य पूर्ण होगा।
आज शुक्रवार है करुणामयी महालक्ष्मी आप सभी पर अपनी करुणा और वात्सल्य रुप आर्शिवाद बरसायें। आपका जीवन शुभ व मंगलमय हो।
।।लक्ष्मी नारायण नमो नमः।।
गुरु राहुलेश्वर
भाग्य मंथन
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