नाद है बस नाद है
इस सृष्टि की रचना शब्द से हुई है जिसमें बस नाद है और ध्यान में इसी नाद के मार्गदर्शन पर एक साधक, योगी और फिर महायोगी बनता है। यह नाद मानों पूरी सृष्टि और आपके मध्य एक संवाद है और यह संवाद जीव के जीवन ग्रहण करने पश्चात् मृत्यु तक चलता ही रहता है इसलिए यह जीवन भी अनमोल है। पंचतत्वों में बंधकर संचित, प्रारब्ध व क्रियामाण कर्मों के फल को भोगते हुए यह संवाद चलता ही रहता है। अज्ञान से ज्ञान की यात्रा में बुद्धि के प्रभावित होने और फिर बोध होने तक नाद से यह संवाद ही मुख्य होता है। सभी प्रकार के इच्छाओं का भोग करने के पश्चात् इस सृष्टि के कण कण से योग तक केवल यही नाद और उससे संवाद मुख्य रहता है इसलिए यह नाद ही सब कुछ है।
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