जिस समय आप अपने वास्तविक स्वरुप को प्राप्त हो जाते है आपका प्रत्येक शब्द उसी क्षण से एक अनुबंध का रुप ले लेता है।

गुरु राहुलेश्वर, भाग्य मंथन

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