जीव तू मंच है प्रपंच का अब ज्ञान चक्षु खोल ले। Guru Rahuleshwar । Bhagya Manthan
जीव जब जन्म लेता है तब उसे एक जीवन मंच मिलता है यह #मंच महाशक्ति माया का क्रीडा स्थल होता है जहाँ वह नित्य जीव को उलझाये रखने के नये नये #प्रपंच रचती है । जीव भरसक प्रयास करने पर इन प्रपंचों को समझ नहीं पाता है। जितना वह इस प्रपंच को समझने का प्रयास करता है वह उतना ही इनमे फंसता चला जाता है। क्या सामान्य जीव और क्या साधू सन्यासी उसके लिए सब एक समान है उस महाशक्ति महामाया को समझने का जब भी किसी ने दम्भ भरा वह उसे मंच पर लाकर मायानगरी में प्रपंच ध्वनियों पर ऐसा नचाती है कि वह जीव अपनी सुदबुध भूल बैठता है। तंत्र मंत्र ज्ञानी नाना प्रकार की विधियों से उस शक्ति को समेटने का बाँधने का प्रयास करते है लेकिन यह भी एकमात्र प्रपंच से ज्यादा कुछ नहीं होता। शक्ति को बाँधने की कल्पना बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे एक गागर में सागर को समा देने की कल्पना है। उस महाशक्ति #महामाया पर आज तक कोई विजय प्राप्त नहीं कर पाया क्योंकि जय विजय तो स्वयं उसके आभूषण मात्र है और इसलिए यदि जीव को इन प्रपंचों से बाहर निकला है तो सरलता और विनम्रता धारण करनी होगी। निर्मल ज्ञान, सरलता और हृदय में सदैव विनम्रता